गाजीपुर: प्रत्यंचा चढ़ाते ही टूटा शिव धनुष, गूंज उठा जय श्रीराम का उद्घोष
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर अतिप्राचीन श्रीराम लीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वावधान में लीला के तीसरे दिन 27 सितम्बर शुक्रवार सायं 7 बजें श्रीराम चबुतरा पर वन्दे वाणी विनायकौ आदर्श रामलीला मंडल के संयोजक राजा भईया तिवारी के निर्देशन पर पूरी भव्यता के साथ धनुष यज्ञ, सीतास्वम्बर तथा परशुराम लक्ष्मण संवाद लीला का मंचन सम्पन्न हुआ। बताते है कि एक बार राजा जनक के दरबार में बहुत पुराना शिव जी का धनुष पड़ा था। जनक की पुत्री सीता जी किन्ही कारणवश शिवजी के भारी धनुष को उठाकर दूसरे स्थान पर रख देती है। जब राजा जनक को पता चलता है कि सीता ने शिव धनुष को उठाकर दूसरे स्थान पर रख दिया है तो उन्होने स्वयम्बर का आयोजन किया। उस स्वयम्बर में दूर दूर के राजा उपस्थित रहे।
साथ ही स्वयम्वर देखने विश्वामित्र अपने शिष्यों राम लक्ष्मण के साथ आकर आसन ग्रहण करते है। राजा जनक के आदेशानुसार मंत्री चाणूर घोषणा पत्र के माध्यम से घोषणा करते है कि जो शिव जी के पुराने धनुष को तोड़ेगा उसी के साथ अपनी पुत्री सीता का विवाह कर दंूगा। सभी राजाओं ने अपना-अपना जोर लगाना शुरू कर दिया लेकिन कोई भी राजा धनुष तोड़ना तो दूर रहा उसे हिला न सके और अन्त में लज्जित होकर अपने आसन पर मस्तक झुकाए बैठ गए। जनक ने राजाओं को मायूस देखा तो उन्होने कहा कि तजहू आस निज निज गृह जाहू लिखा न विधि बैदेही विवाहू। इतना सुनते ही लक्ष्मण जी क्रोधित होकर कहते है महाराज जनक आपने यह भी नही देखा कि रघुकुल सिरोमणि श्रीराम भी स्वयम्वर में उपस्थित है।
इतना सुनने के बाद गुरू विश्वामित्र लक्ष्मण को अपना आसन ग्रहण करने का आज्ञा देते है। गुरू के आज्ञा के बाद लक्ष्मण जी अपने क्रोध को शांत कर के अपने आसन पर बैठ जाते है। थोड़ी देर बाद राजा जनक की व्याकुलता को देखकर गुरू विश्वामित्र श्रीराम को आज्ञा देते है कि हे राम आप शिव जी के धनुष को खंडित कर के राजा जनक के व्याकुलता को दूर करें। गुरू विश्वामित्र के आज्ञा पाकर श्रीराम शिव जी के धुनष के निकट जाकर मन में ही शंकर जी, शिव जी के धनुष को, गुरू विश्वामित्र सहित सभी देवताओं को प्रणाम करके बड़े सरलता के साथ शिव जी के धनुष को उठाकर तमंचा खीचते है। तमंचा चढ़ाते ही धनुष खंड खंड हो जाता है। सभी राजागण लज्जित होकर अपने मस्तक झुका लेते है।
धनुष टूटने के बाद सीता जी स्वयम्बर में आकर श्रीराम के गले में वरमाला डाल देती है। वहा उपस्थित माताए जनकवासी खुशिया मनाते हुए मंगलिक गीत प्रस्तुत करने लगते है। जब धनुष टूटने की आवाज परशुरामा कुण्ड पर समाधि पर बैठे भगवान परशुराम को सुनाई दिया तो परशुराम की समाधि टूट जाती है और वे क्रोधित होकर परशुरामा कुण्ड से मिथिला के लिए प्रस्थान कर देते है। थोड़ी ही देर में महाराज जनक के दरबार के ज्यो ही गेट से स्वयम्बर में पहुचते है तो सभी राजागण उन्हे देखकर सहम जाते है और मन में यह सोचते है कि अब तो ये बचे हुए क्षत्रियों का नाश न कर दें। यही सोचकर थर-थर काॅपने लगे और डरते हुए सभी राजा भगवान परशुराम के चरणों में सिर नवा कर प्रणाम करते है। जबकि वे सभी राजाओं को प्रणाम करते देखकर उन्हें डाटकर भगा देते है। सभी राजा उनके डर से काॅपते हुए अपने सिंहासन पर बैठ जाते है। उनके क्रोध को देखकर राजा जनक अपने पुत्री सीता को धनुष के पास जहा परशुराम खड़े थे वहा पहुचकर खुद प्रणाम करते है और सीता को भी प्रणाम करने की आज्ञा देते है।
परशुराम ने सीता जी को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद महर्षि विश्वामित्र अपने दोनों शिष्यों राम लक्ष्मण के साथ परशुराम के पास आकर अभिवादन करते हुए। दोनों भाईयों को भगवान परशुराम को प्रणाम करनेे की आज्ञा देते है। दोनो भाईयों ने गुरू के आदेशानुसार परशुराम को सिर नवा कर प्रणाम किया। परशुरामजी ने दोनों भाईयों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देते है इसके बाद कुशल क्षेम पुछनेे के बाद उनकी दृष्टि अपने अराध्य गुरू शिवजी के खंडित हुए धनुष पर पड़ती है जिसे देखकर परशुराम जी का क्रोध चरम सीमा पर हो गया। उन्होने राजाजनक से पूछा कि हे मूढ़जनक इस शिवजी के धनुष को तोड़ने का साहस किसने किया जल्दी बताओं अन्यथा मै तुम्हारे पूरे राज्य को तहस नहस कर दूंगा। इतना सुनते ही श्रीराम ने सोचा कि अब सभा में बात बिगडने वाली है तो उन्होने कहा कि नाथ शंभू धनू भंज निहारा होइहि कोऊ एक दास तुम्हारा हे नाथ इस धनुष को तोड़ने का साहस आपका कोई दास ही होगा।
जब परशुराम ने श्रीराम के इस बात को सुना तो उन्होने कहा कि दास सेवा करता है दुश्मनी नही करता। बात बिगड़़ते हुए देखकर लक्ष्मण से रहा नही गया वे परशुराम के सामने आकर कहते हे बहु धनुहि तोरिअ लरिकाई, कबहु न असि ऋषि किन्हि गोसाई। हे नाथ हमने तो लरिकाई में बहुत सा धनुष तोड़ डाला आपने इतना क्रोध कभी नही किया इस धनुष से आप को इतना प्रेम क्यो है। इस प्रकार की बाते को सुनते हुए परशुराम कहते है तू नही जानता है कि बालब्रह्म चारी अति क्रोही विश्वविदित क्षत्रिय कुलद्रोही मैने इस फरसे से सैकड़ो क्षत्रियों का वध कर के उनके जमीन को ब्राह्मणों को बाट दिया। इस प्रकार राम ने लक्ष्मण के क्रोध को देखकर उन्हे पिछे हटा कर विनय पूर्वक परशुराम से प्रार्थना करते है कि हे नाथ मेरे गलतियो को क्षमा करें या अपने इस फरसे से हमे मार डाले जिससे आपका क्रोध शांत हो सके। राम के बात को सुनकर परशुराम ने कहा मै निहत्थे व्यक्ति पर प्रहार नही करता तुम अपने को राम समझते हो तो मेरे साथ युद्ध करों।
श्रीराम ने परशुराम के ललकार भरे बातों को सुनकर कहते है कि हमें जो रण में ललकारे तो मै क्षत्रिय धर्म का अवश्य पालन करूंगा परन्तु मै गौ, ब्राह्मण, स्त्रियों पर प्रहार नही करता। यह मेरे धर्म के अनुकूल है इतना बात सुनकर परशुराम जी अपने क्रोध को शांत करते हुए श्रीराम से कहा कि राम रमा पति करधनु लैहु खैचहू चाप मिटे सन्देहू इस प्रकार परशुराम की बातों को सुनकर श्रीराम उनके हाथ से धनुष को लेकर अपेन मस्तक पर लगाते हुए कहा कि भगवान आप बतावे कि इस बाण को किस दिशा में छोड़े। परशुराम ने श्रीराम से दोनों हाथ जोड़कर कहा कि हे राम इस बाण को दक्षिण दिशा कि ओर छोड़ दे जिससे हमारा क्रोध समाप्त हो जायेगा और मै वापस जाकर भगवत भजन कर सकू। इतना कहने के बाद परशुराम जी उनके विराट रूप का दर्शन करके अपने धाम जाने से पहले राजाजनक से कहा कि हे राजन आप कुशल पूर्वक इस विवाह को सम्पन्न करावे। इसके बाद परशुराम जी अपने धाम के लिए परशुरामा कुण्ड को प्रस्थान कर देते है।
इसके बाद राजाजनक को गुरू विश्वामित्र ने कहा कि हे राजन आप दूतों को अयोध्या भेजकर महाराज दशरथ से प्रार्थना करें कि वे अयोध्या से बारात लेकर मिथिला के लिए प्रस्थान कर दें। महाराज जनक ने गुरू विश्वामित्र के आदेशानुसार दूतों द्वारा निमंत्रण भेजकर महाराज दशरथ से बारात लाने का निवेदन किया। दूतगण मिथिला से चल देते है। वे अयोध्या आकर निमंत्रण महाराज दशरथ को दे कर के दूतों ने कहा कि महाराज आपसे जनक जी ने विशेष अनुरूध किया है कि आप पूरे अयोध्या वासियों को लेकर मिथिला के लिए प्रस्थान कर दे इतना सुनने के बाद राजा दशरथ ने दूतो को वस्त्रा भूषण देकर विदा करना चाहा लेकिन दूतों ने कहा कि महाराज मै अपने पुत्री के ससुराल से भेट नही ले सकता। इतना कहने के बाद दूत जनकपुर के लिए प्रस्थान कर देते है।
राजा दशरथ बारात को लेकर जनकपुर के लिए प्रस्थान कर देते है वहा पहुचकर विधि विधान के साथ सीता राम विवाह का कार्यक्रम सम्पन्न कराते है और वहा कि महिलाये विवाह से सम्बन्धित मांगलिक गीत प्रस्तुत करते है सीता राम विवाह देखकर देवताओं ने देवलोक से फूलों का वर्षा करते है सीता राम के विवाह से सम्बन्धित लीला को देखकर पूरा लीला क्षेत्र हर-हर महादेव और सीता राम की जयकार से गूंज गया। इस मौके पर कमेटी के अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, मंत्री ओ0पी0 तिवारी, उर्फ बच्चा, उपमंत्री लव कुमार त्रिवेदी, प्रबन्धक वीरेशराम वर्मा, स0 प्रबन्धक शिवपूजन तिवारी, (पहलवान) कोषाध्यक्ष अभय अग्रवाल, योगेश कुमार वर्मा एडवोकेट, रामजी, पाण्डेय श्रवण कुमार गुप्ता, राजकुमार शर्मा, विजय मोदनवाल, राम सिंह यादव, कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, कुशकुमार, सुधीर अग्रवाल, मनोज तिवारी, आदि उपस्थित रहे।