गाजीपुर: धनुष मुकुट पूजन के साथ शुरु हुआ अति प्राचीन रामलीला
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर अति प्राचीन श्रीराम लीला कमेटी हरशंकरी के तत्वाधान में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी 25 सितम्बर की सायं 7 बजे हरिशंकरी स्थित श्रीराम सिंहासन पर विधि विधान एवं वेद उच्चारण के साथ धनुष मुकुट का पूजन एसडीएम, सदर सत्यप्रिय सिंह, नगर पालिका अध्यक्ष सरिता अग्रवाल द्वारा आरती उतार कर शुभारम्भ किया। इस अवसर पर पूर्व अध्यक्ष बिनोद अग्रवाल, सभासद संजय कटिहार तथा रामलीला कमेटी के अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, उपाध्यक्ष विनय कुमार सिंह, मंत्री ओम प्रकाश तिवारी (बच्चा), संयुक्त मंत्री लक्ष्मी नारायण, उपमंत्री पं0 लव कुमार त्रिवेदी (बड़े महाराज) प्रबन्धक वीरेश राम वर्मा, उपप्रबन्धक शिव पूजन तिवारी (पहलवान) कोषाध्यक्ष अभय कुमार अग्रवाल, योगेश कुमार वर्मा ने भी आरती उतारी।
पूजन के बाद श्रीराम चवुतरा के मंच पर वन्दे वाणी विनायकौ आदर्श राम लीला मंडल के संयोजक राजा भैया तिवारी के कलाकारो द्वारा नारदमोह व श्रीराम जन्म लीला का मंचन किया गया। एक बार नारद जी परिक्रमा के दौरान अपने मन के गति को रोककर श्रीहरि विष्णु के ध्यान में करके हिमालय के कन्दरा में समाधिष्थ हो गए। इसकी सूचना जब इन्द्र को हुई तो वे डर गए। उन्होने कामदेव को बुलवाकर स्वागत करने के बाद देवर्षि नारद की समाधि को भंग करने का आदेश दिया। कामदेव खुश होकर उनके आश्रम में पहुचकर देवर्षी नारद की समाधि को भंग करने की काफी कोशिश किये। परन्तु कामदेव अपने इस कार्य में असफल रहे।
अन्त में निराश होकर नारद जी के चरणों में गिर गयें। नारद जी समाधि तोड़कर उन्हें क्षमा करते हुए कामदेव को वापस लौट जाने के लिए आदेश देते है। कामदेव वहाँ से इन्द्र के पास निराश होकर लौट आते है और सारी बाते देवराज इन्द्र को बता देते है। जब इन्द्र ने कामदेव की बातों को सुना तो वे वहीं से भगवान विष्णु को प्रणाम करके अपने किये गए कर्मो को पश्चाताप करते है। इधर कामदेव को जीतने के बाद नारद जी को अभिमान हो जाता है। वे अपने अभिमान कोे जा करके सर्व प्रथम शंकर जी से कामदेव को जीतने की बात बता देते है जिसको सुनकर शंकर जी ने निवेदन किया कि नारद जी जो बात आप ने मुझसे बताया इसको ब्रह्मा जी से नही कहियेगा। परन्तु नारद जी से रहा नही गया। वे ब्रह्मा जी को भी कामदेव के बारे में सारी बाते बता देते है।
ब्रह्मा जी भी नारद जी को विष्णु से बात बताने से मना कर देते है। मना करने के बावजूद नारद जी विष्णु लोक मे जाकर कामदेव कोे जितने की बात बता देते है। जब नारद जी से भगवान विष्णु नें अपने योगमाया से मायापुरी नामक नगर का निर्माण किया। उस राज्य का राजा शीलनिधि नामक राजा था। शीलनिधि राजा ने अपनी कन्या का स्वयम्वर रचा था। जिसमें दूर दराज से राजा आये थे। जिसमें नारद जी भी उपस्थित हुए थे। अचानक शीलनिधि राजा को नारद जी के आने की सुचना मिलती है तो वे नारद जी को आदर के साथ स्वयम्बर में ले जाकर अपने पुत्री विश्वमोहिनी के भाग्य के बारे में जानकारी हासिल करते है। नारद जी विश्व मोहिनी का हाथ व स्वरूप को देखकर मोहित हो जाते है और स्वयम्बर से उठ कर विष्णु लोक में जाकर श्री हरि विष्णु से कहते है कि ‘‘जेहिविधि होई नाथ हित मोरा, करहू सो बेगि दास मै तोरा।
‘‘ तथा ‘‘आपन रूप देहू प्रभू मोहि‘‘ जब विष्णु जी नारद जी के मुखारबिन्दु से सुने तो वे नारद जी को अपने रूप के बजाय बन्दर का रूप दे देते है और नारद जी बन्दर का रूप लेकर स्वयम्बर में आ जाते है। उधर विष्णु भी स्वयम्बर में राजा के रूप में उपस्थित होकर अपने गले में विश्वमोहिनी द्वारा वरमाला धारण करके विश्व मोहिनी के साथ विष्णु लोक के लिए प्रस्थान कर देते है। इसके बाद नारद जी विष्णु लोक में जाकर भगवान विष्णु को श्राप दे देते है। इससे नारद जी का मोह भंग हो जाता है। इस लीला के बाद मंडल के कलाकारों ने राम चबुतरा के मंच पर श्रीराम जन्म लीला का मंचन किया लीला के माध्यम से बताया जाता है कि जिस समय असुरों का अत्याचार धरती पर बढ़ता है तो सारे देवता ब्राहमण, गौ, धरती, ब्रह्मा, शंकर आदि देवता का भगवान विष्णु के पास जाकर जय-जय सुरनायक जनसुखदायक प्रनतः पाल भगवन्ता इस प्रकार स्तुति करते है।
स्तुति सुनकर भगवान विष्णु देवताओं को आश्वस्त करते है कि हे देवता गण आपलोग अपने स्थान को जाये मै त्रेता युग में अयोध्या नरेश चक्रवर्ती राजा दशरथ के घर अवतार लेकर असुरों का नाश करके धरती को असुर विहिन कर दूंगा। दुसरे तरफ पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए राजा दशरथ अपने दरबार में कुलगुरू वशिष्ट के आदेशानुसार श्रृंगि श्रषि को बुलाकर पुत्र कामेस्टि यज्ञ का आयोजन करते है। विधि विधान के साथ यज्ञ पूरा होने के साथ अग्निदेव प्रकट होकर खीर भरे कटोरें को राजा दशरथ को देते हुए कहते हैं कि हे राजन खीर को अपनी तीनों रानियों में विभाजित कर देना। राजा दशरथ खीर को लोकर कौशल्या कैकेयी को दिया। खीर दोनों रानियों ने अपने हिस्से में से सुमित्रा को देती है जिससे तीनों रानियों को चार पुत्रों की प्राप्ति होती है।
इसके बाद माता कौशल्या द्वारा भएप्रगट कृपाला दिन दयाला कौशल्या हितकारी नामक स्तुति करते हुए भगवान से प्रार्थना करती है कि हे प्रभु आपका जन्म हमारे हित और जनहित के कल्याण के लिए हुआ है इस दृश्य को देखकर पूरे अयोध्या में खुशियों की लहर दौड़ जाती है। अयोध्या के सभी नर नाारियों ने राम जन्म के अवसर पर सोहर एवं मांगलिक गीत प्रस्तुती किया।
इस मौके पर अध्यक्ष दीना नाथ गुप्ता, उपाध्यक्ष विनय कुमार सिंह, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, संयुक्त मंत्री लक्ष्मी नारायण, उपमंत्री पं0 लव कुमार त्रिवेदी बड़े महाराज, मेला प्रबंधक वीरेश राम वर्मा, संरक्षक सरदार दर्शन सिंह, उप मेला प्रबंधक शिवपूजन तिवारी (पहलवान), कोषाध्यक्ष अभय अग्रवाल, आय व्यय निरिक्षक अनुज अग्रवाल, अभिषेक पाण्डेय राजेश प्रसाद अशोक अग्रवाल योगेश वर्मा एडवोकेट, ऋषि चतुर्वेदी, राजेन्द्र विक्रम सिंह, अजय पाठक, सुधीर अग्रवाल, कृष्ण बिहारी त्रिवेदी पत्रकार, कृष्णांश त्रिवेदी, कुश कुमार त्रिवेदी, श्रवण कुमार गुप्ता, विश्वम्भर कुमार गुप्ता, रामजी पाण्डेय, विश्वमोहन शर्मा, मनोज कुमार तिवारी, राज कुमार सहित कमेटी के सभी पदाधिकारी उपस्थित रहें।