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गाजीपुर: भाजपा में किसकी होगी ताजपोशी, पराक्रम कि परिक्रमा को मिलेगी तरजीह

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर भाजपा के जिलाध्यक्ष की कुर्सी किसे मिलेगी। क्या पराक्रमी को कि परिक्रमा वाले को। यह ऐन मौके पर ही पता चलेगा, लेकिन यह जरूर स्पष्ट है कि उसके लिए पिछले सत्रों की तरह प्रदेश नेतृत्व मतदान की स्थिति नहीं आने देगा। यह भी कि आम सहमति के अभाव में प्रदेश नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। इसी बीच गाजीपुर संगठनात्मक चुनाव के लिए प्रदेश नेतृत्व ने निर्वाचन अधिकारी और सह निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति भी कर दी है। निर्वाचन अधिकारी पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह हैं, जबकि सह निर्वाचन अधिकारी निर्मला पटेल बनाई गई हैं।

पूर्व घोषित संगठनात्मक चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक जिला कमेटी का चुनाव 11 नवंबर को होगा। दरअसल, पार्टी सत्ता-शासन में है। लिहाजा जिलाध्यक्ष की कुर्सी और अहम हो गई है। यही वजह है कि चुनाव में अभी तीन माह से अधिक का वक्त है, लेकिन इसके दावेदारों की सूची लगातार लंबी हो रही है। हर दावेदार अपनी दावेदारी को मजबूत बता रहा है। उनमें कई अपने आकाओं के यहां परिक्रमा भी लगाने लगे हैं। दावेदारों की सूची में पूर्वांचल विकास बोर्ड के सदस्य जितेंद्रनाथ पांडेय, भाजयुमो के पूर्व जिलाध्यक्ष अखिलेश सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के प्रतिनिधि सुनील सिंह, पूर्व जिला महामंत्री रमाशंकर उपाध्याय, जिला उपाध्यक्ष देवब्रत चौबे, बालकृष्ण त्रिवेदी, मुराहु राजभर वगैरह हैं। 

इनके अलावा मौजूदा जिलाध्यक्ष भानुप्रताप सिंह को लेकर चर्चा है कि वह अपना नवीनीकरण चाहते हैं। इसी तरह पूर्व जिलाध्यक्ष बृजेंद्र राय की भी दिली इच्छा है कि उनको दोबारा मौका मिले। मौजूदा जिला महामंत्री श्यामराज तिवारी, रामनरेश कुशवाहा, ओमप्रकाश राम तथा ओमप्रकाश राय की भी ख्वाहिश है कि उन्हें पदोन्नति दी जाए। पार्टी का एक खेमा मौका आने पर भाजयुमो के पूर्व प्रदेश मंत्री योगेश सिंह का नाम आगे बढ़ाने की तैयारी में है।

जाहिर है कि इन दावेदारों में किसी एक ही इच्छा पूरी होगी, लेकिन पार्टी के आम कार्यकर्ता यही चाहते हैं कि नया जिलाध्यक्ष किसी की निजी प्रॉपर्टी बन कर न रह जाए। वह सर्वस्वीकार हो। सर्वसुलभ हो। सर्वसहमति का पक्षधर हो। कार्यकर्ताओं को सम्मान देने वाला हो। कार्यकर्ताओं की सुनने वाला हो। कार्यकर्ताओं की जरूरतों को समझने वाला हो।

यह भी लगभग तय है कि नए जिलाध्यक्ष के सामने अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी को सफलता दिलाने की बड़ी चुनौती होगी। इस दशा में संभव है कि प्रदेश नेतृत्व भी किसी कमजोर को थोपने के बजाए कार्यकर्ताओं की पंसद का जरूर ख्याल करेगा। यह भी हैरानी नहीं कि सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से नए जिलाध्यक्ष का नाम तय हो।
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