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गाजीपुर: स्कूल आईं मैडम जी , पढ़ने नहीं आया कोई बच्चा

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर एक कलम, एक पुस्तक, एक बच्चा और एक शिक्षक पूरी दुनिया बदल सकता है। यह स्लोगन सिर्फ विद्यालयों की शोभा बढ़ाने के लिए हैं, हकीकत तो कुछ और है। बच्चों को क्या कहा जाए, शिक्षक भी इस पर अमल नहीं कर रहे हैं। अगर करते तो शायद उच्च प्राथमिक विद्यालय सुखदेवपुर का यह हाल नहीं होता। जी हां, मंगलवार को इस विद्यालय में एक भी बच्चा पढ़ने नहीं पहुंचा था, हालांकि उन्हें पढ़ाने के लिए दो महिला शिक्षक मौजूद मिलीं। प्रधानाध्यापक अवकाश पर थे। विद्यालय में एक भी बच्चा न होने के चलते दोनों शिक्षक टहल कर टाइम पास कर रही थीं कि कब छुट्टी का समय हो और वह घर की ओर रवाना हों।

दिखाने को तो सदर शिक्षा क्षेत्र में स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय सुखदेवपुर में 26 बच्चे पंजीकृत हैं। प्रधानाध्यापक अगम श्रीवास्तव सहित दो सहायक अध्यापक रेनू बाला राय और किरण कुमारी तैनात हैं। रेनू बाला राय बाहर टहल रही थीं और किरण कुमारी कार्यालय में बैठकर कुछ कागजी कार्य कर रही थीं। इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो जवाब भी हैरान करने वाला मिला। उन्होंने बताया आठ से 10 बच्चे पढ़ने आते हैं। आज भी दस बच्चे आए थे, लेकिन इंट्रवल के बाद घर चले गए। 

यह प्रतिदिन का काम है। कभी गांव में पूजा है तो कभी सोमवार का व्रत है तो कभी गांव में कोई कार्यक्रम है यह कहकर बच्चे चले जाते हैं। उन्होंने स्थिति को और साफ करने की कोशिश की..आगे बताया कि आज मंगलवार को इसलिए सभी बच्चे चले गए, क्योंकि उनके घर मंगलवार का पूजा है, तो बहुतों को सावन के सोमवार के व्रत के बाद मंगलवार को पारन करना है। फिर उन्होंने अगला तर्क दिया कि विद्यालय में चहारदीवारी नहीं है, इसलिए बच्चे चले जाते हैं। गाजीपुर न्यूज़ टीम को बताया गया कि कुछ देर में बच्चे आएंगे लेकिन काफी इंतजार के बाद भी कोई बच्चे नहीं आया, तब तक स्कूल की छुट्टी का समय भी हो गया था। 

स्कूल से गुजर रही एक महिला और युवक से पूछा गया तो मालूम हुआ यहां सिर्फ दो या तीन ही बच्चे पढ़ने आते हैं। कभी कभार छह से सात की संख्या हो जाती होगी। अब जरा सोचिए जिस स्कूल के सभी बच्चे यह कहकर घर चले जाते हों कि पूजा है और पारन करना है तो वहां किस तरह से और कैसी शिक्षा दी जाती होगी। ऐसी स्थिति पर उन शिक्षकों को कोई फर्क नहीं पड़ता। बच्चे आएं या जाएं। उनका साफ कहना है कि बच्चे चले जाते हैं तो हम क्या करें। पंजीकृत बच्चों की कम संख्या के सवाल पर बताया कि अगल-बगल प्राइवेट स्कूल बहुत हैं। सब उसी में पढ़ने चले जाते हैं। 

अब सवाल यह है कि प्रदेश सरकार द्वारा बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का संजोया गया सपना कैसे पूरा हो पाएगा। ऐसे शिक्षक और ऐसी व्यवस्था रही तो यह सपना, सपना ही रह जाएगा। - यह तो बहुत ही खराब स्थिति है। किसी विद्यालय में एक भी बच्चे की उपस्थिति न होना वहां की व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहा है। इसकी जांच कराई जाएगी और संबंधित विद्यालय के शिक्षकों पर कार्रवाई करने के साथ खंड शिक्षाधिकारी से भी इस पर स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। - श्रवण कुमार, बेसिक शिक्षाधिकारी।
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