गाजीपुर: हार के बाद मनोज सिन्हा दिल्ली रवाना, समर्थक उत्साहित
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर बात गाजीपुर संसदीय सीट के चुनाव अभियान के दौर की है। घोर वामपंथी विचारक डॉ. पीएन सिंह ने एक बार अपने बैठकखाने की चर्चा में कहा कि मनोज सिन्हा ने गाजीपुर में जितना विकास किया है। इसके लिए उन्हें जरूर जितना चाहिए, लेकिन जब यह पंक्ति लिखी जा रही है तब मनोज सिन्हा चुनाव हार चुके हैं।
जाहिर है कि मनोज सिन्हा की यह हार न सिर्फ दक्षिणपंथियों को चौंकाई है, बल्कि डॉ. सिंह जैसे वामपंथी भी चौंके होंगे। अब इस हार की समीक्षा भी शुरू हो गई है। एक बात तो साफ है कि सपा-बसपा गठबंधन का जातीय समीकरण प्रदेश के अन्य हिस्सों में भले न चला हो, लेकिन गाजीपुर में यह जमीन पर जरूर दिखा। हालांकि भाजपा अपने पूरे चुनाव अभियान में इस समीकरण को तोड़ने में हर फितरत आजमाती रही। मुख्य रूप से यादव समाज को वह शुरू से टारगेट पर रखी।
भाजपा के जाने या अनजाने में यह बात उठी कि सपा मुखिया गठबंधन उम्मीदवार अफजाल अंसारी के लिए गाजीपुर नहीं आएंगे। इस बात से यादव समाज कुछ भ्रमित हुआ, लेकिन वह ज्यादा दिन तक नहीं रहा। सपा मुखिया अखिलेश यादव बसपा मुखिया मायावती के साथ न सिर्फ गाजीपुर आए, बल्कि मंच पर उनका बॉडी लैंग्वेज पढ़ने के बाद यादव समाज समझ और जान गया कि उसे कहां जाना है और क्या करना है। उसके बाद तो वह खुद को लेकर गठबंधन छोड़ने की बात पर कान लगाने से भी एकदम परहेज करने लगा। भाजपा के सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग के अफजाल के आरोप को और बल तब मिला जब जमानियां सीओ का यादव बिरादरी के एक ग्राम प्रधान को अपने अंदाज में समझाने का कथित आडियो वायरल हुआ। उस आडियो से भी यादव बिरादरी बिदकी।
बसपा के दलित वोट बैंक की तरह यादव वोट की थाती सुरक्षित हो जाने के बाद गठबंधन उम्मीदवार अफजाल अंसारी को गैर यादव, पिछड़ों और अति दलितों को अपने भरोसे में लेने का पूरा मौका मिल गया। मौर्यवंशियों और राजभरों के अलावा बिंद-मल्लाहों में भी अफजाल ने घुसपैठ कर ली। फिर गठबंधन के साथी जनवादी पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय चौहान का हवाला देकर वह चौहानों को भी रिझाने में कामयाब रहे। देखा जाए तो मल्लाहों की दिशा में अफजाल का काम पहले से चल रहा था। पिछले साल दिसंबर में नोनहरा थाना क्षेत्र के कठवांमोड़ में हुई हिंसा के बाद पुलिस कार्रवाई पर निषाद समाज का वह आंसू पोछने में जुट गए थे। यहां तक कि तब जेल भेजे गए निषाद समाज के लोगों की जमानत की पैरवी भी अफजाल अपने खर्चे से करने में पीछे नहीं हटे। नतीजा जेल से जमानत पर जितने निषाद समाज के बंदे बाहर निकले वह उनके लिए राजनीतिक मानव बम बनकर काम किए। फिर अफजाल ने बड़ी राजनीतिक चतुराई से मौजूदा और पूर्व पंचायत प्रतिनिधियों को भी अपने पाले में लाने में कामयाब हो गए।
घाघ लड़वइया अफजाल भाजपा के नाखुश नेताओं, कार्यकर्ताओं को भी साधने में भी कोई हिचक नहीं दिखाए। उनका चुनाव अभियान भी आक्रामक नहीं दिखा। जहां भाजपा उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा चुनावी सभाओं का रिकॉर्ड बनाने में व्यस्त रहे। वहीं अफजाल चिन्हित क्षत्रपों संग बैठकों की रणनीति बनाए। बैठकों के जरिये गठबंधन के आधार को यह भी समझाते रहे कि भाजपा के साधनसंपन्नता को अपने वोट बैंक से ही जवाब दिया जा सकता है। इस तरह वह अपने प्रतिद्वंद्वी की तुलना में कम खर्च में ही अपना चुनाव अभियान भी पूरा कर लिए। अफजाल के चुनाव प्रबंधन से जुड़े एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा कि भाजपा की संपन्नता अंतिम दिन मतगणना में भी दिखी। भाजपा के और गठबंधन के मतगणना एजेंटों के लंच पैकेटों में भी फर्क दिखा।
उधर भाजपा के लोग भी हार की समीक्षा अपने स्तर से कर रहे हैं। विकास के मुद्दे को लेकर भाजपा शुरू से ही अपना आक्रामक चुनाव अभियान चलाई। निश्चित रूप से पार्टी को इसका लाभ भी मिला। पिछले चुनाव में जहां पार्टी को तीन लाख छह हजार वोट मिले थे, वहीं इस बार इसके खाते में चार लाख 46 हजार 690 वोट आए। मतलब पिछले चुनाव की तुलना में एक लाख 40 हजार की सिधी बढ़ोतरी। सबका साथ-सबका विकास के नारे को लेकर भाजपा गैर यादव पिछड़ों व अति दलितों में घुसने की कोशिश तो की, लेकिन पूर्णत: सफलता नहीं मिली। चुनावी विश्लेषकों की मानी जाए तो इन वर्गों के असरदार नेताओं की फौज नहीं थी। यहां तक कि बीच चुनाव अभियान में ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भाजपा से दूर हो गई।
मनोज सिन्हा का अपने इस चुनाव के लिए बीते विधानसभा चुनाव में की गई सोशल इंजीनियरिंग भी काम नहीं आई। उस विधानसभा में उन्होंने जंगीपुर से रामनरेश कुशवाहा और बिंद बिरादरी की नेता डॉ. संगीता बलवंत को सदर से टिकट दिलवाया था। जमानियां विधानसभा क्षेत्र से मनोज सिन्हा सुनीता सिंह को विधायक बनवाए, लेकिन खुद इनके चुनाव की बारी आई तो सुनीता सिंह पूरे जमानियां क्षेत्र तो दूर अपने ही गांव गहमर में वह मतदान का औसत नहीं बढ़वा पाईं। गहमर में मात्र लगभग 34 फीसद ही वोट पड़े। जाहिर है कि राजपूत बाहुल्य इस गांव के अगड़े वोटर बूथों तक जाने की जहमत नहीं उठाए। भाजपा समर्थक मानी जाने वाली बिरादरियों के कुछ लोग तो इसलिए भी वोट से परहेज किए जो पांच साल मंत्री रहते मनोज सिन्हा के स्थानीय प्रबंधन संभालने वालों से किन्ही न किन्ही कारणों से नाखुश थे। बहरहाल बहुतेरे भाजपाई श्री सिन्हा की हार के कारण तलाशने की चिंता छोड़ अब उनकी मोदी सरकार की दूसरी पाली में भी ताजपोशी की बात बतियाने लगे हैं। कुछ अतिउत्साही तो सोशल मीडिया के जरिये अपनी बात मोदी और शाह तक पहुंचाने में जुट गए हैं। इनका उत्साह और उम्मीद शुक्रवार को और बढ़ गई जब मनोज सिन्हा दिल्ली के लिए रवाना हो गए।