लोकसभा चुनाव 2019 : लोकसभा सीट गाजीपुर में है विकास कार्य बनाम जाति की लड़ाई
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर शहीदों की धरती के नाम से विख्यात, पूर्वांचल की गाजीपुर लोकसभा सीट पर इस बार विकास बनाम जाति की लड़ाई है। गाजीपुर में भाजपा उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा द्वारा कराए गए विकास कार्यों की चर्चा तो खूब हो रही है, लेकिन सपा-बसपा गठबंधन का जातीय समीकरण भाजपा के लिए कड़ी चुनौती बन गया है। इस सीट पर सिन्हा के खिलाफ गठबंधन की ओर से अफजाल अंसारी उम्मीदवार हैं।
पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल 2004 से 2009 तक यहां से सांसद रह चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच सिन्हा इस सीट पर महज 33 हजार वोटों से जीते थे जबकि सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। स्थानीय सियासी जानकार कहते हैं कि सपा-बसपा के साथ आने से गाजीपुर सीट पर सामाजिक समीकरण पूरी तरह बदल गया है।
इस सीट पर सर्वाधिक संख्या यादव मतदाताओं की है, उसके बाद दलित और मुस्लिम मतदाता हैं। यादव, दलित एवं मुस्लिम मतदाताओं की कुल संख्या गाजीपुर संसदीय सीट की कुल मतदाता संख्या की लगभग आधी है। गठबंधन का यही समीकरण सिन्हा के लिए चुनौती है।
वैसे, गाजीपुर के स्थानीय लोग यह स्वीकार करते हैं कि जिले में काम हुआ है, हालांकि हार-जीत के बारे में कोई भी कुछ स्पष्ट कहने की स्थिति में नहीं दिखाई देता है। एक स्थानीय स्कूल में शिक्षक अजीत राय कहते हैं कि गाजीपुर में पहली बार काम दिख रहा है। इसे जिले में ज्यादातर लोग मानते हैं। चुनाव में नतीजा क्या होगा, मैं नहीं कह सकता क्योंकि यहां पर जति के आधार पर वोट पड़ता रहा है।
जिले के अर्जनीपुर गांव के निवासी अमजद रिजवी का कहना है कि मनोज सिन्हा के कामों की वजह से मुस्लिम समाज से भी कुछ लोग उन्हें वोट कर सकते हैं। लेकिन विपक्ष के जातीय समीकरण को देखने के बाद फिलहाल आप नतीजे के बारे में कुछ नहीं कह सकते। ऑटो चालक मनोज राम कहते हैं कि रेलवे एवं सड़कों का विकास जरूर हुआ है, लेकिन रोजगार को लेकर कुछ नहीं किया गया। मेरे हिसाब से यहां विकास मुद्दा नहीं रहेगा। लोग जाति के आधार पर वोट करेंगे। यह पहला मौका नहीं है कि मनोज सिन्हा और अफजाल अंसारी आमने-सामने हैं। इससे पहले 2004 में अंसारी ने सपा उम्मीदवार के तौर पर सिन्हा को हराया था।
जीत की हैट्रिक अब तक नहीं : गाजीपुर सीट पर 1989 से पहले कई ऐसे नेता रहे जो लगातर दो बार जीते, हालांकि वे जीत की हैट्रिक नहीं लगा सके। कांग्रेस के हरप्रसाद सिंह वर्ष 1952 और 1957 के बाद चुनाव मैदान से बाहर हो गए। भाकपा के सरजू पांडेय भी 1967 और 1971 के बाद संसद नहीं पहुंच सके। 1980 में इंदिरा लहर में और फिर 1984 में चुनाव जीतने वाले जैनुल बशर भी जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाए।
समाज के सभी वर्ग हमारे साथ : मनोज सिन्हा
केंद्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों में हुए विकास कार्यों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर गठबंधन के जातीय समीकरण को विफल करने की कोशिश में हैं। उन्होंने कहा कि जातीय समीकरण की बात वह कर रहे हैं जिन्हें जमीन का अंदाजा नहीं है। यहां के लोग जानते हैं कि पिछले पांच वर्षों में कितना विकास हुआ है। समाज के सभी वर्ग हमारे साथ हैं। मनोज सिन्हा ने यह भी दावा किया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले पांच वर्षों में हुए कार्यों के कारण जातिवाद की दीवार ध्वस्त हो जाएगी। गत पांच वर्षों में गाजीपुर रेलवे स्टेशन का पुनरोद्धार, रेलवे प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना, गाजीपुर से विभिन्न महानगरों के लिए ट्रेन शुरू होना और सड़कों का निर्माण जैसे प्रमुख कार्य हुए हैं।
तीन दशक से कोई सांसद लगातार दूसरी बार नहीं जीत पाया
गाजीपुर सीट पर बीते तीन दशक के चुनाव में कोई भी सांसद लगातार दूसरी बार जीत नहीं पाया है। इस बार केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के सामने इस परिपाटी को तोड़ने की चुनौती है। इस सीट पर आखिरी बार कांग्रेस नेता जैनुल बशर 1980,1984 के चुनाव में जीते। मौजूदा सांसद सिन्हा पहली बार 1996 में भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचे पर 1998 में हुए अगले चुनाव में हार गए। 1999 में वह गाजीपुर से फिर चुनाव जीते पर 2004 में उन्हें फिर पराजय मिली। पिछली बार वह इस सीट से तीसरी बार सांसद बने और एक बार फिर मैदान में हैं।
2014 के चुनाव में जाति फैक्टर टूटता दिखा था
गाजीपुर में पिछले कई चुनावों में जाति फैक्टर का असर रहा। हालांकि 2014 के आम चुनाव में यह कुछ हद तक टूटता दिखा था। जानकारों की मानें तो यादव बहुल सीट पर अतीत में भाजपा की जीत में सवर्ण वोटरों के साथ कुशवाहा वोटरों की बड़ी भूमिका रही है जिनकी आबादी यहां ढाई लाख से अधिक है। इस बार कांग्रेस के टिकट पर अजीत कुशवाहा के उतरने से भाजपा के लिए थोड़ी मुश्किल हो सकती है। सीट पर डेढ़ लाख से अधिक बिंद, पौने दो लाख राजपूत और लगभग एक लाख वैश्य भी हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भाजपा को उम्मीद है यहां अफजाल अंसारी के बसपा का उम्मीदवार होने से यादव मतदाताओं का एक हिस्सा मनोज सिन्हा की तरफ हो सकता है क्योंकि अखिलेश और अंसारी बंधुओं के बीच रिश्ते अच्छे नहीं माने जाते।
काम कम और प्रचार ज्यादा किया : अफजाल अंसारी
गठबंधन उम्मीदवार अफजाल अंसारी का आरोप है कि मनोज सिन्हा ने भी प्रधानमंत्री मोदी की तरह काम कम और प्रचार ज्यादा किया है। विकास के नाम पर शराब फैक्ट्री खुली है, जबकि नन्दगंज चीनी मिल अब तक नहीं खुल पाई।
कौन कब जीता
1952 एचपी सिंह कांग्रेस
1957 एचपी सिंह कांग्रेस
1962 वीएस गहमरी कांग्रेस
1967 सरजू पांडेय सीपीआई
1971 सरजू पांडेय सीपीआई
1977 गौरी शंकर राय जनता पार्टी
1980 जैनुल बशर कांग्रेस (आई)
1984 जैनुल बशर कांग्रेस (आई)
1989 जगदीश कुशवाहा निर्दलीय
1991 विश्वनाथ शास्त्री सीपीआई
1996 मनोज सिन्हा भाजपा
1998 ओमप्रकाश सिंह सपा
1999 मनोज सिन्हा भाजपा
2004 अफजाल अंसारी सपा
2009 राधे मोहन सिंह सपा
2014 मनोज सिन्हा भाजपा
पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे
2014
मनोज सिन्हा (भाजपा)
मत मिले मत प्रतिशत
3,06,929 31.11
शिवकन्या कुशवाहा (सपा)
2,74,477 27.82
कैलाश नाथ यादव (बसपा)
2,41,645 24.49
2009
राधे मोहन सिंह (सपा)
मत मिले मत प्रतिशत
3,79,233 49.22
अफजाल अंसारी (बसपा)
2,97,149 41.04
प्रभुनाथ (भाजपा)
21,679 2.81