गाजीपुर: ज्वार फसल में पहले ही आया तना बेधक कीट, कर रहा है बर्बाद
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर यह कीट श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, यूगांडा, इंडोनेशिया, ताईवान, मध्य और पूर्वी अफ्रीका आदि देशों में मक्का और ज्वार की फसलों का विनाशकारी कीट है। यह कीट भारत के लगभग सभी मक्का और ज्वार बोये जाने वाले क्षेत्रों में कमोबेश पाया जाता है। यह कीट घास कुल के दर्जनों फसलों जैसे, ज्वार, मक्का, बाजरा, सूडान चरी, गन्ना, धान इत्यादि को बर्बाद कर रहा है। इसकी सूंड़ी विनाशकारी होती है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कीट एवं कृषि जंतु विज्ञान विभाग के भूतपूर्व शोधार्थी रमेश सिंह यादव ने इस तना बेधक कीट को बहुत ही विनाशकारी स्थिति में गाज़ीपुर जिले में गंगा के किनारे करंडा ब्लॉक के करकटपुर गांव निवासी किसान श्री रामनिवास जी की ज्वार के ज़ायद की फसल में देखा । किसान ने बताया कि यह पहले भी आता था परन्तु इस साल इसका बहुत ज्यादा असर दिख रहा है। अब तक तो मेरी फसल कमर की ऊंचाई की हो गयी होती लेकिन इसके लग जाने से अभी घुटने की ऊंचाई तक भी नहीं पहुंच पायी। सिंचाई की अच्छी व्यवस्था नहीं होने से यहाँ ज्यादातर किसान खरीफ ज्वार अनाज व चारे के लिए लेते है।
श्री यादव ने बताया कि 25 से 30 दिन की फसल से लेकर कटाई की अवस्था तक यह कीट नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की सूंड़ी 30 प्रतिशत से लेकर 90 प्रतिशत तक अनाज की फसल को नुकसान पहुंचती है। हमने इस सर्वे के दौरान यहां पर 60 फीसदी ज्वार की फसल में इस कीट का प्रभाव को देखा है। इस कीट की सूंड़ी 20 से 25 मिमी लंबी होती है। पूर्ण वयस्क सूंड़ी काले सिर वाली, भरें – सफेद शरीर पर काली चित्तियों तथा भूरे रंग के हल्के बाल वाली होती है। आकार में ये कीट भले ही छोटे होते हैं लेकिन ये इतनी तेजी से अपनी आबादी बढ़ाते हैं कि देखते ही देखते पूरा खेत में फैल जाते हैं। यही इनकी खासियत है।
इसका व्यस्क तितली भूसे के रंग की मॉथ होती है जो सीधे फसल को नुकसान नहीं पहुंचाता है। इसके अगले पंख पर एक काला धब्बा होता है। इसकी मादा व्यस्क सबसे ऊपर की पत्तियों के लीफ शीथ पर मध्य नशों के पास 25 से 35 अंडों के समूह के रूप में लगभग 300 अंडे देती है। अंडे से एक सप्ताह के भीतर ही सूंड़ी निकलना प्रारम्भ कर देती हैं। इस कीट की सूंड़ी फसल की आरंभिक अवस्था में मुलायम पत्तियों को खुरचकर खाती है जिसके कारण उनमें छोटे-छोटे अनियमित आकर के छेद हो जाते हैं जिन्हें पिन होल या विंडो होल कहते हैं। बाद में यही मुख्य/केंद्रीय प्ररोह में प्रवेश करके मृत प्ररोह (डेड हार्ट) लक्षण उत्पन्न करते हैं और तनों में सुरंग बना देते हैं। इनसे प्रभावित पौधा दूर से ही छतविछत दिखता है।
इसकी सूंड़ी वाली अवस्था 3 से 5 सप्ताह की होती है जो अति विनाशकारी होती है। इसके बाद वह प्यूपा बनने को तैयार हो जाता है और एक सप्ताह की प्यूपा – अवस्था होती है जो तने और बाजरे के अवशेषों में गुजारता है फिर व्यस्क बन जाता है। श्री यादव ने बताया कि इस कीट के प्रबंधन के लिए समन्वित कीट प्रबंधन तकनीकी बेहतर है क्योंकि ये कीट रसायनों के प्रति तेजी से प्रतिरोधकता विकसित कर लेते हैं। इसके लिए खेत में अवशेषों की भली प्रकार से सफाई करनी चाहिए ताकि सूंड़ी और प्यूपा को छिपने के लिए अन्य कोई जगह न मिले जो दूबारा संक्रमण से बचाएगा। इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि अवशेषों को कभी भी जलाना नहीं चाहिए क्योंकि उसमें बहुत से हमारे मित्र कीट भी होते हैं जो नष्ट हो जाएंगे।
खेत के चारो तरफ घास कुल के वैकल्पिक पोषक पौधे नहीं होने चाहिए। यदि इस कीट के प्रकोप की आसंका हो तो बुवाई के समय ही बीज दर थोड़ा बड़ा कर डालनी चाहिए तथा प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। कीट प्रभावित क्षेत्रों में प्रतिरोधक प्रजातियाँ जैसे CSH 7, CSH 8; SPV 17, SPV 19, SPV 29, SPV 58; ICSV 197, ICSV 745, ICSV 88013 इत्यादि का चयन करना चाहिये। ज्वार के साथ लोबिया की अन्तःफ़सली खेती इसके लिए बहुत ही कारगर साबित होती है। नेपियर घास (एक प्रकार की चारे की फसल) को ट्रैप क्रॉप (प्रपंच फसल) के रूप में प्रयोग करना भी बहुत ही लाभकारी होता है।
इसमें कीट की मादा मुख्य फसल होने के बावजूद प्रपंच फसल नेपियर घास पर अंडा देना ज्यादा पसंद करती है और इस घास पर सुंडियों का विकास बहुत ही कमजोर होता है। इस प्रकार कीट को कमजोर कर देने की यह तकनीक ” पुल-पुश तकनीक” भी कहलाती है। व्यस्क मॉथों को प्रकाश प्रपंच के द्वारा एकत्रित करके नष्ट किया जा सकता है। अंड परजीवी ट्राइकोग्राम्मा चिलोनिस को @ 2,50,000/ हेक्टेयर की दर से खेत मे 3 बार छोड़े और तीसरी बार सूंड़ी परजीवी कोटेसिया फ्लाविपीस @ 5000/हेक्टेयर की दर से भी छोड़ें।
यह काफी कारगर साबित होता है। ब्युबेरया बेसियाना और मेटाराईज़ीम नामक कीट रोगकारक फफूंद को भी प्रगतिशील किसान प्रयोग कर सकते हैं जो सूंड़ी की दूसरी और तीसरी अवस्था मे कारगर साबित होता है। इमिडॉकलोरपीड से 3 ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। इसके बावजूद भी अभी कीट की आर्थिक क्षति करने वाली संख्या मौजूद हो तो फ्यूरडॉन 3G 25 किग्रा या साईपरमेथ्रिन 0.75 लीटर (100ग्राम/लीटर पानी) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।