लोकाचार एवं लोक संस्कृति सशक्त समाज व मजबूत राष्ट्र होती है धुरी- पूर्व मंत्री विजय मिश्रा
गाजीपुर। पूर्व मंत्री विजय मिश्रा ने कहा कि लोकाचार एवं लोक संस्कृति सशक्त समाज व मजबूत राष्ट्र प्रमुख धुरी होती है, मनुष्य के बाहरी मन में चलने वाले नैतिक विचारों से जहां सभ्य समाज का निर्माण होता है। वही मानव मन के आन्तरिक सदप्रवृतियों से संस्कृतियां जन्म लेती हैए व्यक्ति अपने अन्तरआत्मा की आवाज सुनकर लोक हित के लिए जो आचरण करता है वह सर्व प्रथम समाज में लोकाचार का रूप लेती है और यही आगे चलकर लोक संस्कृति में परिवर्तित हो जाती है, आज लोकाचार एवं लोक संस्कृति विषय पर विचार करते हुए हमें अपनी पुरातन व गौरवशाली भारतीय संस्कृति पर गर्व होता है क्योंकि आदि युग से लेकर आज के सभ्य समाज के निर्माण तक के इतिहास में दुनिया में विभिन्न संस्कृतियों ने जन्म लिया परन्तु हमारी भारतीय संस्कृति एक ऐसी पुरातन संस्कृति है जो हजारों साल बाद भी अपने मौलिक रूप से न सिर्फ विद्यामान है|
अपितु समय समय पर इसने सम्पूर्ण विश्व जगत का प्रकारान्तरों से मार्ग दर्शन भी किया है। दुनिया की यही एक मात्र ऐसी संस्कृति है जिसने सम्र्पर्ण विश्व को अपना परिवार मानते हुए वसुधैव कुटुम्बकम व सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः की अवधारणा को जन्म दिया हमारी इसी संस्कृतिक विशेषता ने हमेशा सम्पूर्ण विश्व को अपनी तरफ आकर्षित किया है हजारों साल तक विदेशी संस्कृतियों के सम्पर्क में रहने के बावजूद हमने कभी अपनी संस्कृति की मौलिक पहचान को नही छोड़ा उपरोक्त बाते सत्यदेव डिग्री कालेज गाधीपुरम (बोरसिया) में आज आयोजित हो रहे दो दिवसीय लोक संस्कृति एवं लोकाचार अन्र्तराष्ट्रीय सेमिनार एवं कर्मवीर सत्यदेव सिंह अभिनन्दन ग्रन्थ लोकार्पण समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व धर्मार्थ कार्य मंत्री विजय मिश्र ने कहीं, अपनी बात को आगे बढाते हुए श्री मिश्र ने कहा कि आज सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिन्तित है ग्लोबल स्तर पर तमाम प्रयास किये जा रहे है, पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है जबकि प्राचीन काल से ही हमारे ऋषियों मनिषियों ने भारतीय समाज में लोकाचार एवं लोक संस्कृति के माध्याम से इस दिशा में इतने ठोस उपाय कर दिये थे
जिसका कोई दुसरा विकल्प हो ही नही सकता क्योकि हमारी संस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है जिसमें गाय, गंगा, पशु, पक्षी, नदी, वृक्ष सबको अति महत्वपूर्ण मानते हुए इनके प्रति होने वाले दुराचरण को पाप की श्रेणी में रखा और इन सबको पूज्य मानकर सम्पूर्ण लोक को इनके संरक्षण व सवर्धन के लिए सम्पूर्ण लोक को प्रेरित किया इतना ही नही सत्य अहिंसा लोक कल्याण के जीवन दर्शन पर आधारित हमारी भारतीय लोक संस्कृति ने नारी को सम्मान देते हुए उसे शाक्ति का रूप माना व पूज्यन्ते यत्र नार्यस्तु रमन्ते तत्र देवता जैसे महान सुक्तियों से नारी जगत को महिमा मण्डित किया है परन्तु आज समाज में बुद्धिजीवी वर्ग के मौन धारण कर लेने के कारण समाज को सही मार्ग दिखाने वालों की कमी महसूस हो रही है, आज समाज एक बार पुनः बुद्धिजीवी वर्ग से यह मांग कर रहा है कि वे आगे आकर समाज के लिए सही मार्ग प्रदर्शित करें। आज जितनी आवश्यकता समाज को विकास परक कार्यो की है उतनी ही आवश्यकता सामाजिक एवं नैतिक उत्थान की भी है क्योंकि लोकाचार एवं लोक संस्कृति के सरक्षण में यह वर्ग अपनी बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है और एक बार फिर हम अपने देश को विश्व गुरू का दर्जा दिलाने में अपना महती योगदान दे सकते है।