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श्रीराम गये वनवास, शोकाकुल हुए अयोध्यावासी

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में लीला के पांचवे दिन बुधवार को स्थानीय मुहल्ला हरिशंकरी स्थित श्रीराम चबुतरा पर बंदे वाणी बिनायकौ रामलीला मण्डल के कलाकारों द्वारा ऐतिहासिक रामलीला के दौरान महाराज दशरथ कैकयी संवाद, श्रीराम संवाद व विदाई से संबंधित लीला का मंचन किया गया। कलाकारों ने लीला के माध्यम से सभी दर्षको को मंत्र मुग्ध कर दिया। बताते है जिस समय महाराजा दशरथ अपने बड़े पुत्र राम को अयोध्या का राज देने का मन बनाया और उन्होने अपने राज्य दरबार में मंत्रि‍यों, गुरूजनों तथा सभी ब्राम्हणों को राज दरबार में बुलवाकर राम के राज तिलक कराने का प्रस्ताव रखा सभी ने उक्त प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। 

अब राजा दशरथ के खुशी का ठिकाना न रहा उन्होने पूरे अयोध्या नगरी को ध्वज पताकाओं से सजवा दिया तथा सभी राज्य के राजाओं सहित नर नारियों को निमंत्रण पत्र भेजा इतने में दासी मंथरा उधर से घुमते हुए राज दरबार की और पहुची और देखा पुरा अयोध्या नगरी को आकर्षक ढंग से सजाया गया है। इस राज को जानने के लिए उपस्थित नर नारियों से पुछती है कि ये नगर क्यों सजाया गया है सभी ने एक साथ उत्तर दिया अरे दासी तु नही जानती है कल सुबह महाराजा दशरथ अपने बड़े पुत्र श्रीराम को राज तिलक देने जा रहे है इतना सुनते ही मंथरा महारानी कैकयी के कक्ष में जाकर सब कुछ बताते हुए कहा कि महारानी जी महाराजा दशरथ अयोध्या का राज अपने बड़े पुत्र राम को देने जा रही है अगर उन्होने ने ऐसा किया तो आपकी स्थिति क्या होगी बार-बार इस बात को वह महारानी को कोसती रही इसके बाद महारानी कैकयी दासी मंथरा के बार-बार कहने पर उसके बहकावें में आ गयी और उसने दासियों को महाराज को बुलाने हेतु दासी को महाराज दषरथ के दरबार में भेजती हैं। जब दासी महाराज के दरबार के गेट पर गई तो दरबारियों ने उसे रोक दिया और कहां कि महाराज इस समय आवश्‍यक कार्य में लगे हुए है। 

इतना सुनने के बाद दासियां वापस कैकयी के पास आकर सारी बातें बताते हुए कहा कि महाराज अभि खाली नही है गेट पर दरबारियों ने मुझे जाने से रोक दिया इसके बाद कैकयी को पुरा विष्वास हो गया कि महाराज अयोध्या का राज अपने प्रिय पुत्र राम को देने जा रहे है। उसने दासी मंथरा के कथनानुसार राजसी वस्त्राभुषण उतार कर विखेरते हुए जमीन पर लेट गई। उधर महाराज को जब पता चला कि महारानी ने दासी को हमें बुलाने के लिए भेजा था मैं नही जा सका इतना सोचने के बाद महाराज कैकयी के कक्ष में पहुचते है और उसके उदास होने का कारण पुछते है तो महारानी कैकयी ने बताय कि महाराज गत वर्श पूर्व आप युद्ध के लिए कहीं गये थे जब युद्ध करके लौटे तो आपके रथ का पहिया किसी गढ्ढे में फस गया था तो मै अपने सखियों के साथ उस रास्ते से गुजर रही थी तो हमने देखा कि आप अधिक परेषान है तब हमने आपके निकट आ कर रथ के पहिये को गढ्ढे से मुक्त करा दिया। 

उस समय आप हमारे उपर प्रसन्न होकर दो बरदान आपने मुझे दिया मैने उस समय कहा कि महाराज समय आने पर दोनो बरदान मांग लूंगी अब वो समय आ गया है। वो थाती मुझे देने की कृपा करें। महाराज ने कैकयी की बात सुनकार कहां कि रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाये पर वचन न जाई। ऐसा कहते हुए वरदान मांगने को कहा तब महारानी ने कहां कि मुझे इस बात का संदेह है मै आपकी बातों में आने वाली नही हूं। आप वरदान देने के पहले अपने प्रिय पुत्र श्रीराम का षपथ लें कि जो आप कहोगी वही मैं करूंगा तब महाराज मजबुरीवश भुपति राम शपथ जब करई इस प्रकार महाराजा दशरथ राम का शपथ ले करके कहा कि अब बताओं तुम्हें क्या चाहिए तब कैकयी ने कहा कि महाराज पहला वरदान हमारे पुत्र भरत को अयोध्या का राज तथा दुसरे वरदान में तापस बेसि बिशेखी उदासी चैदह बरिस राम वनवासी। 

महारानी कैकयी ने राम के लिए तपस्वी के भेष में चैदह वर्ष के लिए राम को वनवास यही दो वरदान हमें चाहिए। जब राजा दशरथ ने सुना एक तो वरदान उन्होने स्वीकार किया कि अयोध्या का राज भरत को देने के लिए इतना तक गनीमत था लेकिन जब महाराज ने राम को वनवास का प्रसंग सुनकर बिहोस होकर जमीन पर गिर पड़े। जब इसकी सूचना राज दरबार में पहुंची तब गुरू वशिष्‍ट, गुरू माता अरूंधती कैकयी के कक्ष में आ पहुची और जब महाराज को होस आया तो श्रीराम का नाम लेते रहे तब महाराज के मुख से श्रीराम का नाम सुनकर कैकयी ने दोनो दासियों को राजदरबार में भेज कर राम को बुलवाती है। राम जब कैकयी के कक्ष में पहुंचकर देखा तो पिता जी उदास बैठे थे। इस दृश्य को देखकर राम ने माता कैकयी से उदास होने का कारण पुछते है कैकयी ने बताया कि महाराज के पास वरदान स्वरूप थाती पड़ी हुई थी उसे हमने मांग लिया। 

एक तो भारत को अयोध्या का राज उन्होने खुषी से वचन दिया दुसरे वरदान जब उन्होने सुना कि राम को वनवास से संबंधित बरदान सुना तो बेहोस होकर जमीन पर गिर गये किसी तरह होस में आये तो सिंहासन पर उदास बैठ गये। श्रीराम ने जब सुना अपने वनगमन के बारे में सुना खुषी मन से माता कौषल्या व माता सुमित्रा के पास गये वन जाने का आदेष उन्होने माताओं से लिया। जब वन गमन की बात लक्ष्मण व सीता सुनी तो वे लोग भी वन जाने के लिए तैयार हो गये। इस लीला को देखकर उपस्थित दर्षकगणों के आंखों में आंषु गिरने लगा और उन्होने जय श्री राम का उद्घोश किया जिससे पुरा लीला स्थान राम मय हो गया। 

इस मौके पर कमेटी के अध्यक्ष दिनानाथ गुप्ता, मंत्री ओम प्रकाष तिवारी (बच्चा), उपमंत्री लव कुमार त्रिवेदी, कार्यवाहक प्रबंधक बीरेष राम वर्मा, उप प्रबंधंक षिवपुजन तिवारी, अजय कुमार पाठक, सुधीर कुमार अग्रवाल, अषोक कुमार अग्रवाल, रोहित कुमार अग्रवाल, विजय कुमार मोदनवाल, सुधीर कुमार अग्रवाल, रामजी पाण्डेय, कृश्णांष त्रिवेदी, सरदार चरनजीत सिंह, योगेष कुमार वर्मा, राजकुमार षर्मा आनन्द जी आदि लोग उपस्थित रहे।

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