जयंत के नेत्र भंग मंचन को देख दर्शक हुए भाव-विभोर
गाजीपुर। वनवास के दौरान श्रीराम भारद्वाज मुनि से आर्शीवाद लेने व वन प्रदेश के ऋषियों को दर्शन देते हुए चित्रकूट पहंचते है वहा कुछ दिन पर्णकुटी में निवास करते है कि एक दिन श्रीराम अपने अपने पत्नी सीता के लिए फूलो का गजरा बना रहे थे कि अचानक देवराज इन्द्र का पुत्र जयंत ने श्री राम के बल को आजमाने के दृश्टि से उसने शीला पर बैठी हुई सीता चरण में अपना चोंच मारता है सीता के पैर में खून आते देखकर राम घबरा गए तब उनकी दृष्टि जयंत पर पड़ती है इसके बाद श्री राम धनुष पर तीर चढ़ा कर तीर छोड़ दिया वह तीर जयंत को दौडा़ता चला गया और जयंत भागते भागते ब्रह्मा, विष्णु, महेश के पास जाकर सारी बातों को सुनाते हुए सहायता मांगता है मगर राम से बैर रखने वाले जयंत का कोई देवता मदद करने को तैयार नही हुए।
इसी बीच संयोगवस रास्ते में नारद जी भ्रमण के दौरान जयंत को घबराते हुए देखा उन्होने घबराने का कारण पूंछा तब जयंत ने बताया प्रभु मुझसे कुछ गलती हो गई मैने राम के बल को आजमाने के लिए सीता के चरण में चोंच मार दिया इस पर क्रोधित होकर श्री राम ने बाण छोड़ा वह बाण मेरा पीछा करता आ रहा है तब नारद जी ने सारी बातो को सुनकर जयंत से कहा कि तुम्हारी रक्षा प्रभु श्री राम के अलावा स्वर्ण मृत्यु तथा पाताललोक के देवतागण भी सहायता नही कर सकते। तुमने बड़ा भारी अपराध किया है अतः तुम श्री राम के शरण में जाओ वही कल्याण कर सकते है तब विवस होकर देवराजपुत्र इन्द्र श्री राम के शरण में जा करके गिर कर क्षमा मांगता है तब श्री राम दयावान होकर अपने बाण से उसकी एक आंख फोड़ डाली।
इसके बाद श्री राम, सीता व लक्ष्मण आगे चलते है थोड़ी समय बाद वे तीनों महर्षि अत्रि ऋषि के आश्रम में जाते है अत्रि ऋशि श्री राम, लक्ष्मण व सीता को देखकर भावविभोर होते हुए श्री राम की स्तुति करते है कि ‘‘नमामि भक्त वत्सलम कृपालु षील कोमलम् भजामिते पदाम्बुजम अकामिना स्वधमिदम् ‘‘ इस तरह श्री राम की स्तुति करते हुए तीनो मुर्तियों को आसन देकर बैठने को कहते है। जब निशाद राज केवट जमीन पर बैठता है तो ऋषि अत्रि ने निशाद से कहा कि तुम जमीन पर क्यों बैठते हो बराबर में बैठो इतना सुनने के बाद वह प्रार्थना करता है कि प्रभु मै तो नीच परिवार से हूं और मैं आपका दास हॅू इतना सुनते ही अत्रि ऋषि ने कहा अपने आप को नीच कहने वाला ही बड़ा होता है। दूसरी तरफ तुम त्रिलोकी नाथ श्री राम के मित्र हो इसी से तुम्हारा स्थान बराबर का होता है इतना सुनने के बाद ऋशि के आज्ञा का पालन करते हुए निषाद राज आसन लेकर श्री राम के बगल में बैठता है।
थोड़ी देर बाद सीता जी माता अनसुइया के साथ उनके कक्ष में जाती है अनसुइया ने भी सीता को यथास्थान देकर ‘‘ पाती ब्रत धर्म का पाल करते हुए अनसुइया सीता से कहती है कि नारी का धर्म पति सेवा है इसके अलावा नारियों को देवी देवताओ का पूजा अगर न करे और नारी जगत अपनी पतियों की सेवा करें इससे बढ़कर और कोई पूजा पाठ या धर्म कोई नही है क्योंकि बताया जाता है एकइ धर्म एक ब्रत नेमा काय बचन मन पति पद प्रेमा दूसरी ओर अनसुइया ने समझाते हुए सीता से कहती है परम सति असुराधिप नारी तहिबल ताहि ना जितही पुरारी अर्थात अगर नारी पति की सेवा निस्काम भाव से करती है और उसके आज्ञा में रहकर नारी धर्म का पालन करती है इसको देखते हुए देवाधिदेव महादेव भी ऐसे नारी को देखकर मस्तक झुकाते है। इसके बाद नारी धर्म को बताते हुए माता अनसुइया ने सीता को वस्त्राभूषण देकर सम्मान किया। इसके बाद अत्रि ऋषि के आश्रम के आस-पास जितने जंगली राक्षस थे उनका वध करते हुए उन्होने कबन्ध राक्षस का भी बध करके ऋषियों की रक्षा की। इस लीला को देखकर उपस्थित लोग श्री रामचन्द्र के जयकारा से पूरा लीला स्थल गुंजायमान कर दिया।
अति प्राचीन श्री रामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला के नवे दिन रविवार को जयंतनेय भंग, ऋषि अत्रि मिलन, माता अनुसुइया संवाद व राक्षस कवन्धवध नामक लीला का मंचन राजाषंभूनाथ के बाग अर्बन बैंक के बगल स्थित श्री राम चवुतरा पर किया गया। इस मौके पर अध्यक्ष दीनानाथ, उपाध्यक्ष प्रकाषचन्द्र श्रीवास्तव, विनय कुमार सिंह, मंत्री श्री ओम प्रकाश तिवारी (बच्चा), सयुक्त मंत्री लक्ष्मी नारायण, उपमंत्री पं0 लव कुमार त्रिवेदी, मेला व्यवस्थापक (कार्यकारी) बीरेष राम वर्मा, उपमेला व्यवस्थापक शिवपूजन तिवारी (पहवान) कोषाध्यक्ष अभय कुमार अग्रवाल, आय-व्यय निरीक्षक अनुज अग्रवाल , कार्यकारिणी सदस्य-.राम नारायण पाण्डेय, राजेश प्रसाद, प्रदीप कुमार, ओम नाराणय सैनी, अशोक कुमार अग्रवाल, योगेश कुमार वर्मा, ऋषि चतुर्वेदी, राजेन्द्र विक्रम सिंह , अजय पाठक , सुधीर कुमार अग्रवाल, कृश्णांष त्रिवेदी, विजय मोदनवाल, अजय कुमार अग्रवाल कृश्ण बिहारी त्रिवेदी आदि उपस्थित रहे।