अपने लाल के शौर्य पर गर्व
अपनी बहादुरी से दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद का शहादत दिवस 10 सितंबर को मनाया जाएगा। 1965 में भारत-पाक युद्ध में हमीद ने पाक सेना से चीनी निर्मित तीन पैटन टैंकों को नष्ट करते हुए अपने प्राणों को देश के लिए न्यौछावर कर दिया था। इसके बाद भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र सम्मान से नवाजा था। देश के इस वीर सपूत का नाम आज भी देशवासी गर्व के साथ लेते हैं।
जनपद के जखनिया ब्लाक मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर उत्तर-पूर्व और दुल्लहपुर रेलवे स्टेशन से लगभग चार किलोमीटर पूरब में स्थित धामूपुर गांव में परमवीर चक्र विजेता हवलदार अब्दुल हमीद का जन्म एक गरीब परिवार उस्मान खां दर्जी के घर एक जुलाई 1933 को हुआ था। उनकी माता का नाम बकरीदन था। अब्दुल हमीद को बचपन से ही सेना में भर्ती होने का शौक था। वह अपनी दादी से बराबर कहा करते थे कि मैं फौज में जाऊंगा। गरीबी के कारण उन्होंने अपने पिता के काम में भी हाथ बंटाना शुरू कर दिया और दर्जी का काम भी सीख लिए।
उन्हें खेल-कूद का भी शौक था। अब्दुल हमीद 22 दिसंबर 1954 को बनारस जाकर फौज में भर्ती हो गए। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। उस युद्ध में उनको भी अपनी वीरता दिखाने का मौका मिला। युद्ध के दौरान उनके तमाम साथी एक-एक कर धराशाई होते गए। यह सब अपनी आंखों के सामने देखकर भी उनका साहस कम नहीं हुआ। वह कंकरीली-पथरीली जमीन पर जंगल-झाड़ियों के बीच भूखे-प्यासे, बच-बचाकर चलते रहे और एक दिन तेजपुर नामक बस्ती में पहुंच गए। इस मोर्चे की बहादुरी ने उन्हें जवान अब्दुल हमीद की जगह लांस नायक अब्दुल हमीद बना दिया।
12 मार्च 1962 के बाद उन्हें तीन वर्षों के अंदर ही नायक, हवलदार, कंपनी क्वार्टर मास्टर की उपाधि हासिल हो गई। सन् 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया तो उस युद्ध में अब्दुल हमीद ने साहस का परिचय देते हुए चीनी निर्मित तीन पैटन टैंकों को नष्ट करते हुए अपने प्राणों को देश के लिए न्यौछावर करते भारत माता की गोद में सो गए। उनकी इस वीरता के लिए भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र सम्मान से नवाजा।
पाक को पैटन टैंकों पर नाज था
गाजीपुर। 17 सितंबर 1965 को भारत-पाक के बीच घमासान लड़ाई जारी थी। पाकिस्तान को अपने पैटर्न टैंकों पर बड़ा नाज था। ये टैंक सब कुछ रौंदते हुए भारत की सीमा में घुसते जा रहे थे। यह देख अब्दुल हमीद अपने साथियों के साथ ललकारते हुए आगे बढ़े। उनकी एंटी टैंक बंदूक ने आग उगलना शुरू किया और देखते ही देखते तीन टैंक क्षण भर में ध्वस्त हो गए, जिससे पाकिस्तानी हमलावरों को मुंह की खानी पड़ी। सीने में गोली लगने से वीर अब्दुल वीर गति को प्राप्त हो गए।