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राष्ट्रभाषा की हकदार है हिंदी

गाजीपुर। साहित्य चेतना समाज के तत्वावधान में हिंदी दिवस पर गुरुवार की देर शाम बाबा जागेश्वरनाथ मंदिर परिसर में गोष्ठी हुई। उसमें हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने की मांग उठी। पीजी कॉलेज के अर्थ शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ.श्रीकांत पांडेय ने कहा कि हिंदी दिवस की रस्म अदायगी नहीं होनी चाहिए। महात्मा गांधी ने कहा था कि हिंदी को राजभाषा अथवा राष्ट्रभाषा होने का नैसर्गिक अधिकार है। किसी भाषा की स्वीकार्यता के मानक हैं कि उस भाषा में विपुल साहित्य लिखे जा रहे हों। बहुत लोग बोलते हैं। उस भाषा में रोजगार की ताकत हो। 

रेल मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य डॉ.व्यासमुनि राय ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कहे थे कि जब तक हिंदी अपने पैरों पर खड़ी हो जाती तब तक अंग्रेजी को बनाए रखना चाहिए जबकि महात्मा गांधी हिंदी को ही राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत करते रहे। हिंदी सामर्थवान है। जीजीआईसी के पूर्व प्रिंसिपल डॉ.विमला मिश्रा ने कहा कि भारतीय संस्कृति का अंग्रेजीकरण हो गया है। हम अंग्रेजी पहन रहे हैं। ओढ़ रहे हैं। यह चिंता का विषय है। इस पर विचार करना होगा। गोष्ठी की मुख्य अतिथि हिंगलाज सेना की राष्ट्रीय अध्यक्ष साध्वी लक्ष्मीमणि शास्त्री ने कहा कि हिंदी से ही भारतीय संस्कृति की पहचान है। 

हिंदी की उपेक्षा हुई तो भारतीय संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी। इसके लिए हमे सजग, सचेत और जागरूक होना पड़ेगा। गोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ रचनाकार अनंत देव पांडेय अनंत ने हिंदी की उपेक्षा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। हमें अपने ही घर से ही हिंदी को सम्मानजनक स्थान दिलाने का प्रयास करना होगा। गोष्ठी कामेश्वर दूबे, गोपाल गौरव, उमाशंकर पथिक, अमरनाथ तिवारी अमर, रमेश प्रेमी, दिनेश शर्मा, दुर्गा प्रसाद तिवारी ने भी अपनी रचना प्रस्तुत की। इस मौके पर प्रभाकर त्रिपाठी, कन्हैया पाल, धीरज पांडेय, अनिल उपाध्याय, जयप्रकाश दूबे, चंद्रप्रकाश लाल, पारसनाथ गुप्त आदि उपस्थित थे। संचालन डॉ.संतोष तिवारी ने किया।
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