गाजीपुर: सीताराम का विवाह देखकर उपस्थित लोग हुए भाव-विभोर
गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला के चैथे दिन मंगलवार को हरिशंकरी श्रीराम चबुतरा पर रामलीला के दौरान बन्देवाणी विनायकौ आदर्श रामलीला मण्डल के कलाकारों द्वारा सीताराम विवाह राजतिलक मंथरा कैकयी संवाद तथा कोपभवन लीला का मंचन किया गया जिसको देखकर उपस्थित श्रद्वालु भावुक हो गये। लीला के क्रम में दर्शाया गया कि जिस समय मिथिला नगरी के राजा जनक के राज्य में कुल देवी माता गौरी का मन्दिर स्थापित था।
वहाँ पर सीता जी गौरी पूजन के अन्तराल फूलवारी में फूल चुनने फूलवारी गई थी। उसी समय विश्वामित्र के आदेशानुसार रामलक्ष्मण उनके पूजा के लिए फूल लेने गये थे। दोनों ने एक दूसरे को देखकर मंत्रमुग्ध हो गये। सीता जी श्रीराम को पाने के लिए गौरी माता का पूजन करती है। उधर माता गौरी प्रसन्न होकर के सीता जी को आर्शीवाद देती है कि सूनु सिय सत्य असीस हमारी पूजि ही मनकामना तुम्हारी इस प्रकार आशीष देकर सीता के गले में फूलमाला मूर्ति द्वारा सीता के गले में पड़ जाती है। उधर राजा जनक पूरा मिथिला नगरी ध्वजपताकाओं से आकर्षक सजाया गया। इसक बाद राजा जनक अपने कुल गुरू सतानन्द तथा गुरू विश्वामित्र से विवाह सम्बन्धित विचार-विमर्श करते है।
विचार-विमर्श के दौरान गुरू विश्वामित्र ने जनक को आदेश देकर अयोध्या नगरी दूत द्वारा राजा दशरथ को निमंत्रण भेजते है। राजा दशरथ निमंत्रण पाकर जनक द्वारा भेजा गया निमंत्रण पत्र स्वीकार करते हुए अपने कुल गुरू महर्षि वशिष्ठ से विचार विमर्श करते है। गुरूदेव ने राजा के बातों को स्वीकार करते हुए बारात ले जाने की आदेश देते है। इधर राजा दशरथ दूत के द्वारा बारात की तैयारिया करवाकर मिथिला के लिए रवाना हो जाते है। जब बारात राजा जनक के राज्य में पहुँचा तो राजा जनक मिथिला वासियों के साथ अयोध्या नरेश राजा दशरथ व कुल गुरू वशिष्ठ, गुरू विश्वामित्र को स्वागत करने के बाद दोनों को विवाह मण्डप में ले जाते रहे तथा उच्चासन देकर उन्हें विराजमान कर दिया। दोनों पक्ष की ओर से वैवाहिक कार्यक्रम शुरू हो गया।
माताएं मांगलिक गीत प्रस्तुत करती है। इसी बीच ब्रम्हा ने शिवलोक पहुँचकर भगवान शिव से बारात में चलने का अनुरोध करते है। दोनों देवगण बाहृमण वेश बदलकर विवाह मण्डप में पहुँचे और तथा श्रीराम को प्रणाम किये। इसके बाद राजा जनक ने चारों भाईयों का राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन का परात में चरण दोकर अपने सर पर लगाते हे। थोडी देर बाद विवाह का पूरा कार्यकम सम्पन्न होता है। विवारोपरान्त राजा दशरथ चारों बालकों तथा सीता माण्डवी, श्रुति कृति व उर्मीला चारों बहुओं के साथ बारात लेकर अयोध्या पहुँचे। कुछ दिन बीतने के बाद राजा दशरथ ने गरू वशिष्ठ को बुलवाकर अयोध्या का राजतिलक अपने बड़े पुत्र राम को देने का प्रस्ताव रखा, इतना सुनकर गुरूदेव ने उनके बातों को स्वीकार करते हुए कहा कि महाराज आपका विचार उत्तम है। राजा दशरथ गुरूदेव का आदेश पाकर पूरा अयोध्या नगरी ध्वजपाताकाओं से सजवा है।
उधर मंथरा जब अयोध्या वासियों से राम के राजतिलक की बात सुनी तो दौड़ी हुई महरानी कैकयी कक्ष में पहुँचकर सारी बाते महारानी कैकयी को बताते हुए उन्हें याद दिलाती है कि महरानी राजा दशरथ के पास आपका वरदान स्वरूप थाती पड़ा हुआ है उसे मांग लो। और कोप भवन में जाकर राजषि आभूषण जमीन पर बिखेर दो और जमीन पर सो जाओं। इतना सुनने के बाद महारानी कैकयी कोपभवन में जाकर सारे वस्त्र-आभूषण उतारकर फेक दिया और जमीन पर लेट गयी। इस मौके पर अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, मंत्री ओम प्रकाश तिवारी उर्फ बच्चा, उपमंत्री लव कुमार त्रिवेदी (बड़ महाराज), सरदार दर्शन सिंह प्रबन्धक, विरेश राम वर्मा, योगेश कुमार वर्मा, राजकुमार शर्मा, अजय कुमार अग्रवाल, अजय कुमार पाठक, बांके तिवारी व सरदार चरन जीत सिंह, पंण्डित कृष्ण बिहारी त्रिवेदी मीडिया प्रभारी उपस्थित थे।