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गाजीपुर - सीता स्वयंबर को देख दर्शक हुए भाव-विभोर

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी हरिशंकरी के श्रीराम चबूतरा पर लीला के तीसरे दिन सोमवार को सांय 7 बजे से वन्दे वाणी विनायकौ आदर्श रामलीला मंण्डल के कलाकारो द्वारा धनुष यज्ञ, भगवान परशुराम लक्ष्मण संवाद लीला का मंचन किया गया। 

बताते है कि एक समय मीथिला नरेश विदेह राजा जनक के दरबार में भगवान शंकर का विशालकाय पुराना शिव धनुष रखा था। जिसको जनक की पुत्री सीता ने किसी कारणवश शिव धनुष को एक स्थान से दुसरे स्थान पर रख दिया। जब जनक जी को जब यह मालुम हुआ तो उन्होने दुसरे दिन पूरे राज्य में ढिढोरा पीटवाते हुए सभी राज्य के राजाओं, देवताओं, असुरो सहित सभी राजाओं को निमंत्रण देकर के बुलवाया। 

सभी राजा निमंत्रण पाकर के राजा जनक के दरबार में पहुंचे और यथा स्थान ग्रहण कर लिये। साथ ही सीता अपने सखियों के साथ सभा में उपस्थित हुई। थोड़ी ही देर में राजा जनक के आदेशानुसार अपने मंत्री चाणुर से धनुष तोड़ने की घोषणा करायी। सभी राजा शिव धनुष पर अपना बल आजमाने लगे। साथ में लंका नरेश रावण भी वहा पहुंचे उन्होने ज्यों धनुष तोड़ने के लिए उठा तो आकांशवाणी हुई कि हे रावण जिस कन्या से तुम स्वंयबर रचाने जा रहे हो वह आपके खुन से प्रादुर्भाव हुआ है। 

इतना सुनने के बाद रावण सभी से लज्जित होकर अपने राज्य में वापस चला गया। दुसरी तरफ सभी राज्य के राजा शिव धनुष न टुटने पर अपमानित होकर सर झुकाये यथास्थान बैठ गये। उधर राजा जनक जब सभी राजाओ को हार कर सर झुकाये बैठे देखा तो उन्होने दुखित होकर कहा कि ‘‘तजहु आस निज निज गृह जाहु, लिखा न विधि वैदेही बिआहूं।’’ हे राजागण आप लोग अपने अपने राज्य के लिए लौट जाईयें, मुझे ऐसा लगता है कि धरती वीरो से खाली हो गयी है। इतना सुनते ही श्रीराम के छोटे भ्राता लक्ष्मण क्रोधित होकर राजा जनक से कहा कि हे राजा आपको यह भी मालूम नही कि यहा पर मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम भी बेठे है और आप सभी बीरो को चुनौति दे रहे ह। इतना सुनने के बाद राजा जनक शान्त होकर के अपने आसन पर बैठ गये। दुसरी तरफ गुरू वशिष्ठ ने लक्ष्मण को समझाते हुए कहा कि वत्स अपना आसन ग्रहण करों। गुरू के आदेश का पालन करते हुए लक्ष्मण अपने आसन पर बैठ गये। 

जब गुरू वशिष्ठ ने विदेह राजा जनक को उदास देखा तो ज्योतिष द्वारा शुभ मुहुर्त देखकर अपने शिष्य श्रीराम से कहा कि  हे राम तुम उठों और विदेह राज जनक को धनुष तोड़कर के उनके चिन्ता को दूर करों। इतना सुनते ही श्रीराम ‘गुरू ही प्रणाम मन ही मन किन्हा, अति लाघव उठाये धनु लिन्हा’ उन्होने गुरू देवता सहीत सभी राजाओ को सर झुकाकर प्रणाम किया तथा शिव धनुष के समीप जाकर शंकर जी को प्रणाम करते हुए कहा कि हे भोलेनाथ आपका दास राम धनुष भंग करने जारहा है आप अपनी कृपा दृष्टी बनाये रखियेगा। इतना कहते हुए विशाल शिव धनुष को भी प्रणाम कर शिव धनुष को उठा लिया और उसपर प्रत्यंचा चढ़ा दिया। प्रत्यंचा चढ़ते ही धनुष दो खण्ड़ो में कड़कड़ाहट की आवाज करते धनुष टुट गया। वहा उपस्थित राजा अचंम्भित हो गये तथा स्वंर्गलोक से सभी देवतागण जय जयकार करते हुए श्रीराम पर फूलों की बरसा किया। 

जब शिव धनुष टुटने की आवाज परशुरामा कुण्ड तक पहुंचा तो वहा पर तपस्या में लीन जमदग्नि ऋषि के पुत्र भगवान परशुराम की तपस्या टुटी तो आवाज सुनते ही क्रोध्धित होकर परशुरामा कुण्ड से मीथिला पहुंचे। उनके आते ही सभी राज्य के राजागण डर के मारे कांपने लगे कि अब लगता है किसके उपर काल मडरा रहा है कि यहा भगवान परशुराम पधारे यही सोचते हुए सभी राजागण क्रमशः भगवान परशुराम के पास आकर के सर झुकाते हुए परशुराम के चरणो में प्रणाम किया। सभी राजाओं को परशुराम ने धक्का देते हुए हटा दिया। इसके बाद राजा जनक सीता के साथ परशुराम जी के पास आये और अपने पुत्री सीता से भगवान परशुराम को प्रणाम करने को कहा। 

पश्चात उन्होने भी क्रोधित परशुराम को प्रणाम किया बावजुद इसके परशुराम जी का का्रेध शान्त नही हुआ उसके बाद राजा गांधि के सुपुत्र विश्वामित्र अपने आसन से राम-लक्ष्मण के साथ उठकर परशुराम ऋषि का अभिवादन किया और राम-लक्ष्मण का परिचय कराते हुए प्रणाम करने को कहा। इसके बाद परशुराम की दृष्टि खण्डित हुए शिव धनुष पर पड़ी तो उस दृश्य को देखकर और क्रोधित हो गये और सभी राजाओं को सावधान करते हुए कहा कि मूढ़ जनक तुम ये बताओं की हमारे आराध्य भगवान शिव के धनुष को कितने खण्डित किया जल्दी बता नही तो तेरा सारा राज्य जला कर भस्म कर दुंगा। 

इतना सुनते ही जब श्रीराम ने देखा मामला विभत्स होते देखा तो उन्होने आगे आकर कहा कि हे नाथ शिव धनुष को खण्डित करने का साहस आपका कोई दास ही कर सकता है। दुसरे किसी में शक्ति नही है, इतना सुनते ही परशुराम ने कहा कि सेवक का काम है सेवा करना युद्ध करना नही। जब मामला और आगे बढ़ा तो श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण से सहा नही गया उन्होने कहा बहु धनु ही तोरीय लरीकाई, कबहूं न असिऋशि किन्ह गोसाई’ हे ब्राम्हण देवता हमने लड़कपन में ऐसे बहुत से धनुष तोड़ डाले लेकिन आपने इतना क्रोध कभी नही किया। मामला आगे बढ़ता देखकर श्रीराम ने लक्ष्मण को समझाते हुए अपने पीछे हटा लिया। श्रीराम अपना परिचय देते हुए कहे कि हे प्रभु आप तो भगवान परश सहित परशुराम है आपके सामने मेरी क्या औकात है। 

मेरा छोटा सा नाम राम है, जब भगवान परशुराम श्रीराम को दिव्य दृष्टि से देखा तो उन्हे साक्षात चतुभुर्ज रूप में परशुराम ने दर्शन किया। भगवान परशुराम ने कहा अभी मैं मानने को तैयार नही हंूं, मैं राम जब मानुगा कि आप मेरे इस धनुष को लेकर प्रत्यंचा चढ़ाये जिससे हमारी शंका दूर हो। राम रमापति करधन लेहू खैचहू चांप मिटे संदेहू। परशुराम के आदेश का पालने करते हुए श्रीराम धनुष लेकर भगवान परशुराम को प्रणाम करते हुए धनुष के प्रत्यंचा को चढ़ाते हुए कहा कि हे प्रभु अब आप बताये कि  इस बाण को कहा छोड़े। तब भगवान परशुराम ने कहा कि हे रधुनन्दन इस बाण को दक्षिण दिशा में छोड़े जिससे मेरा यह क्रोध शान्त हो और मैं आपके नाम में लीन हो जाऊ तथा राजा जनक से कहा कि हे राजन ये संयोग ब्रम्हा ने अति उत्तम दिया है बड़े विधि विधान के साथ स्वंयबर का कार्य पूरा करो। 

इतना कहने के बाद भगवान परशुराम श्रीराम को सिर झुकाते हुए अपने स्थान परशुरामा कुण्ड चले गये। इधर मीथिला नगर में जनक नन्दिनी सीता ने श्रीराम को वर माला पहनाकर अपने होने वाले पति को प्रणाम किया। इस लीला मंचन को देख कर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये और जय श्रीराम के उदघोष करने लगे। इस मौके पर अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, उपाध्यक्ष प्रकाश चन्द्र श्रीवास्तव व विनय कुमार सिंह, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी बच्चा, संयुक्त मंत्री लक्ष्मीनारायण, उपमंत्री पं0 लवकुमार त्रिवेदी, कोषाध्यक्ष अभय कुमार अग्रवाल, कार्यवाहक प्रबन्धक विरेश राम वर्मा, उपप्रबन्धक शिवपूजन तिवारी, रामनरायण पाण्डेय, ओमनरायण सैनी, अशोक कुमार अग्रवाल, हिमांशु अग्रवाल, योगेश कुमार वर्मा, राजेन्द्र विक्रम सिंह, विजय मोदनवाल, सुधीर कुमार अग्रवाल, कुश कुमार त्रिवेदी आदि लोगा उपस्थित रहे।

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